तुमको है सौगंध आज फिर जलने की
तुमको है सौगंध, आज फिर जलने की
इन भ्रातिम लहरों से डटकर,
चलायमान पवनो से लड़कर,
अडिग खड़े तुम अमर हिंद में
प्राण देश हित में करने की ।
तुमको है सौगंध आज फिर जलने की ।।
फैली मतभेदों की जड़ता ,
मिटा रहे ये, भारत की गुरुता
एक माला के मोती बनकर ,
एक सूत्र में चलने की ।
तुमको है सौगंध, आज फिर जलने की ।।
चंहुदिश अब है,विघ्न भरा सब
जनमानस रोदन है पराश्रव्य,
दु:ख रंजित जन के मन में,
नव ज्वाला से दुख हरने की ।
तुमको है सौगंध,आज फिर जलने की ।।
- sugandh mishra

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