मै कैसे बदल गया ...

अपने आप मे ही उलझा रहता था मैं,
ये सबको उलझाने का शौक कब से लग गया ??

 घर का आँगन ही तो सब कुछ होता था,
मुझे ये बाहर का शौक़ कब से लग गया ||

यूँ तो मरने जीने से कभी डरा नहीं था,
जीतने हारने का खौफ़ कब से लग गया ??

एक सीधा मन और सीधा रास्ता था,
फिर ये इधर उधर का रुख़ कब से लग गया !!

अखबार और पॉलिटिक्स टाइम वेस्ट थे कभी ,
मुझे अब खबर का शौक कब से लग गया ||

दूध पीना भी न गवार था मुझे ,
अब ये चाय का शौक कब से लग गया ||

मैंने गांव की मिट्टी को चाहा था कभी,
मुझे शहर का शौक कब से लग गया !

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